Ψ आधार
यह पोस्ट बाकी सारी अभिव्यक्तियों के लिए एक आधार होगा। और अगर आप "धारणा" में अपने लेखकी से योगदान करना चाहते हैं तो आपको लेखकी के अपेक्षा का भी थोड़ा अंदाज मिल जाएगा।
ओलिवर वेंडेल होम्स ने एक बहुत खूबसूरत बात बोली थी, "जटिलता के इस पार की सरलता के लिए मैं कुछ भी नहीं देना चाहूंगा, लेकिन जटिलता के उस पार की सरलता के लिए मैं अपना जीवन न्योछावर कर दूं।" गौर फरमाने पर यह बात आपको अनेक पहलुओं में नजर आएगी।
इसका हाल ही में एक उदाहरण देखने को मिला, "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस"। आम नागरिक को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जो समझ है, AI में दुनिया के श्रेष्ठ वैज्ञानिकों को भी शायद वही समझ होगी, तकरीबन जिस मशीन में सोचने की क्षमता हो। पर जिन व्यक्तियों को इस क्षेत्र में सीमित ज्ञान है, जैसे कि मैं, उन्हें यह बात पचाने में थोड़ी मुश्किल होती है क्योंकि हम शायद अभी जटिलता के उस पार नहीं पहुंच पाए है। हमारे लिए अभी भी AI की समझ पुराने डेटा के माध्यम से कुछ नए डेटा का अनुमान लगाने तक सीमित है।
हमारे विचार जटिल हो सकते हैं, हमारे विषय जटिल हो सकते है और नतीजतन लेख से भाव बयान करने में बातें भी जटिल हो सकती है। इसका अर्थ यह नहीं कि भाषा भी जटिल हो। अगर लेखक विषय या विचार को सरल भाषा में नहीं व्यक्त कर पा रहा तो यह उसकी अक्षमता है, वह शायद खुद भी उस विषय को पूर्णतः नहीं समझता। महान प्रोफेसर रिचर्ड फेनमैन का भी यही मानना था।
भाषा सरल रखने के साथ साथ लेखकी में एक और चुनौती है, संक्षिप्तता की। एक बार की घटना है, एक प्रोफेसर ने दूसरे प्रोफेसर को मेल किया, मेल की पहली लाइन थोड़ी अजीब थी, "इस लंबे मेल के लिये खेद है। क्योंकि मैं जल्दी में हूं, इसलिए मजबूरन मुझे यह मेल थोड़ा लंबा लिखना पड़ रहा है"। प्रोफेसर अपने विचार को अधूरा नहीं छोड़ सकते थे, उन्हें संक्षिप्त में भाव व्यक्त करने में सोच-सोच के लिखना में ज्यादा समय लगा भले ही शब्द कम लिखने होते।
प्रोफ़ेसर ने दूसरे प्रोफ़ेसर से खेद इसलिए बयान किया क्योंकि वह इस बात से अवगत थे कि पाठक को संक्षिप्त लेखन ही पसंद है।