अकेलापन: सुकून की कला
लेखक: कनिका गौर
मेरा मानना है, अब हर पहलू में प्रोग्रेसिव होती दुनिया में, अकेले होना भी नॉर्मलाइज़ हो जाना चाहिए। अपने साथ बैठ कर कॉफ़ी पीना, खाना खाना, किताब पढ़ना, समंदर देखना, आसमान देखना, पहाड़ देखना, इसमें सुकून का भाव होना चाहिए।
कोर्स की पढ़ाई करते वक़्त एक शब्द पढ़ा “Metacognition”, जिसका अर्थ है - अपने ही विचारों और लर्निंग के बारे में सोचने की प्रक्रिया। यह कितना गहरा विचार है, जब हम दुनियादारी से ध्यान हटाकर अपने आपको देखने लगें, समझने लगें और सुलझाने लगें।
आमतौर पर हर जगह, हर वक़्त, हमें एक अजीब सा ख़ालीपन टीस देता रहता है, जिसे दुनिया का हर इंसान पूरी दुनिया से छिपा पाता है, सिवाय खुद के। मन के किसी कोने में वो विचार और भाव घर कर के बैठा रहता है। हम अकेलेपन में कविता लिखते हैं 'इंतज़ार' की, और किसी के संग रहने पर लिखते हैं 'साथ' की। हम अपनी कविता कब लिखते हैं?
साथ बुरा नहीं होता, लेकिन, अकेलेपन को भी खालीपन वाला भाव नहीं मिलना चाहिए। क्यूँकि, कभी- कभी खालीपन किसी के साथ रहते हुए भी बना रहता है।